Gandhi Jayanti 2023: मुरादाबाद में तैयार हुई थी असहयोग आंदोलन की भूमिका, गांधी की आवाज पर एकजुट हुए थे लोग

वैसे तो 1857 में ही मुरादाबाद के क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को अपनी ताकत का लोहा मनवा दिया था। इस क्रांति के वर्षों बाद जब राष्ट्रपिता Gandhi Jayanti के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ पूरा देश फिर एकजुट हुआ तो मुरादाबाद इसमें अग्रणी रहा। 1920 में बापू ने यहीं से देश के बड़े नेताओं के साथ मिलकर असहयोग आंदोलन की भूमिका बनाई।

इसके बाद कांग्रेस के कलकत्ता (कोलकाता) अधिवेशन में इसे पारित किया गया। गांधी जी सितंबर 1920 में पहली बार मुरादाबाद आए थे। यहां उन्होंने डॉ. भगवान दास की अध्यक्षता में महाराजा टाकीज (वर्तमान में सरोज सिनेमा) में एक बैठक को संबोधित किया था, जिसमें असहयोग आंदोलन की भूमिका बनाई गई थी।

इस बैठक में बापू के साथ पं. मदन मोहन मालवीय, पं. मोतीलाल नेहरू, पं. जवाहर लाल नेहरू, डॉ. अंसारी, हकीम अजमत खां, मोहम्मद अली, शौकत अली आदि स्वतंत्रता सेनानी शामिल हुए थे। इस सभा के समापन में महात्मा गांधी ने कहा था कि बहुत गंभीर चिंतन के बाद भी मैं यही मानता हूं कि देश की स्वतंत्रता का एकमात्र मार्ग असहयोग ही है।

बापू की अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग की आवाज पर पूरा शहर एकजुट हो गया था। उनके आह्वान पर छात्रों ने ब्रिटिश सरकार के स्कूल-कॉलेजों में जाना छोड़ दिया। वकीलों ने अदालतों में जाने से इन्कार कर दिया था। 12 अक्तूबर 1929 को महात्मा गांधी दूसरी बार मुरादाबाद आए।

यहां स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रघुवीर सरन खत्री, पं. शंकर दत्त शर्मा, प्रो. रामसरन, पं. बाबूराम शर्मा, अशफाक हुसैन, जगन्नाथ सिंघल, पं. बूलचंद दीक्षित, बनवारी लाल रहबर आदि के नेतृत्व में शहर के लोगों का हुजूम गांधी जी के स्वागत में उमड़ा था। अमरोहा गेट स्थित ब्रजरत्न पुस्तकालय आज भी बापू के आगमन की गवाही दे रहा है।

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गांधी जी रघुवीर सरन खत्री की बग्गी में बैठकर अमरोहा गेट पहुंचे थे और पुस्तकालय का उद्घाटन किया था। इस पुस्तकालय में महात्मा गांधी के जीवन से संबंधित तमाम पुस्तकें उपलब्ध हैं। स्वतंत्रता सेनानी पं. हरिप्रसाद वैद्य इस पुस्तकालय का संचालन करते थे।

पुस्तकालय की ऊपरी मंजिल पर विनोबा भावे ने सर्वोदय भवन की स्थापना की थी। तीसरी बार महात्मा गांधी कांग्रेस पार्टी के कलकत्ता (कोलकाता) अधिवेशन में जाते समय कुछ समय मुरादाबाद रेलवे स्टेशन पर रुके थे। उन्होंने स्थानीय लोगों के निवेदन पर स्टेशन पर ही सभा को संबोधित किया था। हालांकि रेलवे के पास बापू के मुरादाबाद भ्रमण का कोई रिकॉर्ड नहीं है।

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